भ्रष्टाचार से निपटने का सबसे कारगर रास्ता हो सकता है जन लोकपाल बिल। अन्ना हजारे के अनशन पर बैठने से पहले इसी वर्ष 30 जनवरी को 60 शहरों में लाखों लोग सड़कों पर उतरे थे। आखिर क्या है जन लोकपाल बिल? मौजूदा व्यवस्था क्या है? सरकार ने किस तरह का बिल लाना चाहती है? उस पर क्या है आपत्ति?
वर्तमान व्यवस्था क्या?
1.लोकायुक्त की नियुक्ति मुख्यमंत्री हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस और नेता प्रतिपक्ष की सहमति से करता है।
2. लोकायुक्त की नियुक्ति मुख्यमंत्री हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस और नेता प्रतिपक्ष की सहमति से करता है।
3. मंत्रियों, एमपी के खिलाफ जांच और मुकदमे के लिए लोकसभा अध्यक्ष की अनुमति जरूरी
4. सीबीआई और सीवीसी सरकार के अधीन
5. जजों के खिलाफ जांच के लिए चीफ जस्टिस की अनुमति जरूरी
सरकार द्वारा तैयार लोकपाल बिल
1. लोकपाल तीन-सदस्यीय होगा। सभी रिटायर्ड जज।
2. चयन समिति में उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, दोनों सदनों के नेता पक्ष और नेता प्रतिपक्ष, कानूनमंत्री और गृहमंत्री
3. मंत्रियों, एमपी के खिलाफ जांच और मुकदमे के लिए लोकसभा/ राज्यसभा अध्यक्ष की अनुमति जरूरी। प्रधानमंत्री के खिलाफ जांच की अनुमति नहीं।
4. सीवीसी और सीबीआई लोकपाल/ लोकायुक्तके अधीन नहीं।
5. लोकायुक्त केवल सलाहकार की भूमिका में। एफआईआर से लेकर मुकदमा चलाने की प्रक्रिया पर विधेयक मौन। जजों के खिलाफ कार्रवाई पर मौन
क्या है आपत्ति?
1. जजों को रिटायर होने के बाद सरकार से उपकृत होने की आशा रहने से निष्पक्षता प्रभावित होगी
2. भ्रष्टाचार के आरोपियों के ही चयन समिति में रहने से ईमानदार लोगों का चयन होने में संदेह
3. बोफोर्स, जेएमएम सांसद खरीद कांड, लखूभाई पाठक केस जैसे मामलों में प्रधानमंत्री की भूमिका की जांच ही नहीं हो पाएगी।
4. राजनीतिक हस्तक्षेप की संभावना रहेगी।
5. लोकायुक्त भी सीवीसी की तरह बिना दांत के शेर की तरह रहेगा। केजी बालाकृष्णन जैसे जजों के खिलाफ कार्रवाई संभव नहीं होगी।
जन लोकपाल विधेयक
1. ग्यारह सदस्यीय लोकपाल। चार का लीगल बैकग्राउंड जरूरी, अन्य दूसरे क्षेत्रों से
2. चयन समिति में सीएजी, जानेमाने कानूनविद, मुख्य चुनाव आयुक्त और नोबेल और मैग्सेसे जैसे अंतरराष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित
3. प्रधानमंत्री, मंत्रियों, एमपी के खिलाफ जांच और मुकदमे के लिए लोकपाल/ लोकायुक्त की अनुमति जरूरी। स्वत: संज्ञान का भी अधिकार।
4. सीवीसी और सीबीआई केंद्र में लोकपाल और राज्यों में लोकायुक्त के अधीन
5. जजों के खिलाफ जांच के लिए लोकपाल/लोकायुक्त को अधिकार।
आठ बार पेश होने के बावजूद इसलिए बिल पास नहीं
1. देश में लोकपाल की स्थापना संबंधी बिल की अवधारणा सबसे पहले 1966 में सामने आई।
2. इसके बाद यह बिल लोकसभा में आठ बार पेश किया जा चुका है। लेकिन आज तक यह पारित नहीं हो पाया।
3. पूर्व प्रधानमंत्री इंद्रकुमार गुजराल के कार्यकाल में एक बार 1996 में और अटलबिहारी वाजपेयी के कार्यकाल में दो बार 1998 और 2001 में इसे लोकसभा में लाया गया।
4. वर्ष 2004 में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने वादा किया था कि जल्द ही लोकपाल बिल संसद में पेश किया जाएगा। अब तक सरकार ने इसकी सुध नहीं ली।
5. इस बिल के तहत प्रधानमंत्री को लाया जाए या नहीं इस पर लंबे समय से मशक्कत चल रही है। अब तक कोई नतीजा नहीं।
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