जनसुरक्षा क़ानून ख़त्म करने की माँग
विभिन्न सामाजिक एवं राजनीतिक संगठनों ने मांग की है कि ब्रितानी हुकूमत के दौरान 'औपनिवेशक सोच पर बनाए गए जनविरोधी क़ानूनों' की समीक्षा संविधान के दायरे में की जानी चाहिए.
छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में शुक्रवार दोपहर इन संगठनों के कार्यकर्ताओं ने एक प्रस्ताव पारित कर बिनायक सेन को रिहा करने की मांग के साथ साथ छत्तीसगढ़ विशेष जनसुरक्षा अधिनियम, 2005 को वापस लिए जाने की भी मांग की है.
आठ से भी ज्यादा संगठनों के प्रतिनिधियों ने मांग की है कि प्रदेश में 'जनांदोलनों पर हो रही दमनात्मक कार्रवाई' को तत्काल बंद किया जाए.
आठ से भी ज्यादा संगठनों के प्रतिनिधियों ने मांग की है कि प्रदेश में 'जनांदोलनों पर हो रही दमनात्मक कार्रवाई' को तत्काल बंद किया जाए.
ऐसी आशंका थी कि छत्तीसगढ़ की सरकार जनसुरक्षा क़ानून का दुरुपयोग वामपंथी, जनवादी एवं प्रगतिशील ताक़तों के ख़िलाफ़ करेगी. इसीलिए इसका विरोध किया जा रहा था. बिनायक सेन के मामले में आए फैसले से इस आशंका के सही होने की पुष्टि हो गई है
सीआर बक्षी, सीपीआई
विरोध प्रकट करने वाले संगठनों में विशेष रूप से छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा, मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी, भारत की कम्युनिस्ट पार्टी, नदी घाटी मोर्चा, बस्तर एकता परिषद, बैगा महापंचायत, महिला जागृति संगठन और जागरूक नागरिक मंच शामिल थे.
धरने पर मौजूद भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के सीआर बक्षी का कहना था, "ऐसी आशंका थी कि छत्तीसगढ़ की सरकार जनसुरक्षा क़ानून का दुरुपयोग वामपंथी, जनवादी एवं प्रगतिशील ताक़तों के ख़िलाफ़ करेगी. इसीलिए इसका विरोध किया जा रहा था. बिनायक सेन के मामले में आए फैसले से इस आशंका के सही होने की पुष्टि हो गई है."
धरने पर मौजूद भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के सीआर बक्षी का कहना था, "ऐसी आशंका थी कि छत्तीसगढ़ की सरकार जनसुरक्षा क़ानून का दुरुपयोग वामपंथी, जनवादी एवं प्रगतिशील ताक़तों के ख़िलाफ़ करेगी. इसीलिए इसका विरोध किया जा रहा था. बिनायक सेन के मामले में आए फैसले से इस आशंका के सही होने की पुष्टि हो गई है."
उन्होंने कहा, "सरकार इस कानून का उपयोग जनतांत्रिक ताक़तों के ख़िलाफ़ ही कर रही है."
पीयूसीएल के राजेंद्र सायल का कहना था कि बिनायक सेन के मामले में अभियोजन पक्ष के कमज़ोर तथ्यों के बावजूद बिनायक सेन को राजद्रोह का दोषी ठहराया गया है जो दुर्भाग्यपूर्ण है.
पीयूसीएल के राजेंद्र सायल का कहना था कि बिनायक सेन के मामले में अभियोजन पक्ष के कमज़ोर तथ्यों के बावजूद बिनायक सेन को राजद्रोह का दोषी ठहराया गया है जो दुर्भाग्यपूर्ण है.
उनका कहना था कि वक़्त आ गया है कि ऐसे सभी क़ानूनों की समीक्षा की जाए जो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को रोकते है.
सायल ने कहा, "बिनायक सेन के बाद अब इन क़ानूनों के निशाने पर अब पत्रकार होंगे."
उन्होंने टीवी पत्रकार राहुल सिंह को गुजरात के एक मामले में हाल ही में जारी की गई नोटिस का भी हवाला दिया.
टिप्पणियाँटिप्पणी लिखें
संभवतः यह सब देशद्रोह की श्रेणी में नहीं आता होगा क्योंकि उन्हें 'न्याय' करने का हक़ दिया गया है. श्री बिनायक सेन को वह सब कुछ करने का हक़ किसने दिया. चले थे जनांदोलन करने. जिस देश का 'न्यायदाता' न्याय न करता हो और मामले को लटका के रखता हो और वहीं इस मामले में जो भी न्याय किया गया है वह भले ही दुनिया को 'अन्याय' लग रहा हो पर कर तो दिया. वाह, आप ने भी कैसा सवाल उठा दिया. लगता है कि अभी आप पत्रकारिता के सरकारी लुत्फ़ के 'मुरीद' नहीं हुए हैं. अभी हाल ही में कई पत्रकारों के नाम ज़ाहिर हुए हैं. लेकिन इतना हाय तौबा क्यों मचा रखी है? ऊपर वाले माननीय जज साहब ज़मानत तो दे ही देंगे यदि ऐसा लगता है की भारी अपराध है ज़मानत नहीं मिलेगी तो उससे भी ऊपर वाले माननीय जज साहब जो नीचे वालों की सारी हरकतें जानते हैं वह ज़मानत दे देंगे. विनोद जी आपकी चिंता वाजिब है इस देश के लिए अगला ब्लॉग संभल कर लिखियेगा 'यह देश है वीर जवानों का, बलवानों का, धनवानों का. जयहिंद.
अधिकारी लाचारी का रोना रोकर
आम आदमी चुप्पी साधकर
पत्रकार लछेदार लेख लिखकर
हम जैसे लोग इस पर व्यंग लिखकर
या लेखक की सराहना या विरोद्ध करके
आओ हम अपने कर्तव्यों को पूरा समझे
हम लोग ज़रूर सुधर जाएगा.