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Monday, February 21, 2011

रोज़गर मुहैया न कराने की सज़ा


रोज़गर मुहैया न कराने की सज़ा

राजस्थान में रोज़गार मांगते हाथों को तय समयसीमा में काम नहीं देना एक ग्राम पंचायत सचिव को बहुत भारी पड़ा है.
राज्य के आदिवासी बहुत डूंगरपुर ज़िले में कोई 17 ग्रामीणों ने ग्राम सचिव से रोज़गार की गुहार की. मगर उसने अनसुना कर दिया. अब इसके बदले इन ग्रामीणों को कोई 6,375 रुपए बेरोज़गारी भत्ता दिया गया है. ये राशि ग्राम सचिव के वेतन से काट कर दी गई है.
राष्ट्रीय रोज़गार गारंटी कानून (मनरेगा) के तहत ऐसे मामलों में बेरोज़गारी भत्ता देने का प्रावधान है. राज्य में ये इस तरह का दूसरा मामला है.
इससे पहले वर्ष 2009 में भीलवाड़ा ज़िले में एक व्यक्ति को ऐसे ही बेरोज़गारी भत्ता दिया गया था.
डूंगरपुर के ज़िला कलेक्टर पूर्ण चंद किशन ने बीबीसी को बताया कि मामले में जाँच पड़ताल के बाद पता चला कि ग्राम सचिव ने समय पर ग्राँववालों को रोज़गार उपलब्ध नहीं करवाया.
कलेक्टर के मुताबिक ये क़ानून का उल्लंघन था और ग्रामीण इसकी एवज़ में बेरोज़गारी भत्ते के हक़दार थे.
'कड़ा संदेश जाएगा'
मनरेगा यूपीए सरकार की बड़ी परियोजनाओं में से एक है
सामाजिक कार्यकर्ता अरुणा रॉय और उनका संगठन मनरेगा के तहत काम कर रहे लोगों के हक़ के लिए सतत कम कर रहा है.
इस संगठन के मुताबिक डूंगरपुर के जगबोर गाँव के सत्रह लोगों ने पाँच नवंबर 2009 को ग्राम सचिव से काम के लिए आग्रह किया था. क़ानून के मुताबिक इन ग्रामीणों को बीस नवम्बर ,२००९ तक रोज़गार मुहैया कराना था. मगर ऐसा नहीं हुआ.
इन ग्रामीणों को दो दिसम्बर ,2009 को रोज़गार नसीब हुआ यानि तय मुद्दत के 13 दिन बाद.
इस मामले में जाँच पड़ताल के बाद पता चला कि ग्रामीणों ने रोज़गार के लिए ग्राम सचिव से गुहार की थी,मगर उसने समय पर उन्हें रोजगार उपलब्ध नहीं करवाया .
पूर्ण चंद किशन, डूंगरपुर के ज़िला कलेक्टर
इस संगठन के साथ ग्रामीणों ने कलेक्टर किशन से अपने हक़ के लिए फ़रियाद की. अब हर ग्रामीण को तयशुदा मियाद में काम नहीं देने पर 375 रूपये का भत्ता दिया गया है.
हालाँकि इसमें एक साल लगा.मगर कलेक्टर के इस फ़रमान से बाकी ग्रामीण मशीनरी सजग हो गई है.
डूंगरपुर में इस मुद्दे को उठा रहे मान सिंह सिसोदिया और हरी ओंम कहते हैं कि वे प्रसाशन के इस कदम से संतुष्ट हैं और इससे निचले स्तर पर अच्छा संदेश गया है.
भारत में बहुतेरे कानून है जो जनता के हक़ और हित के लिए बने हैं. पर वो क़ानून की किताबों तक महदूद हैं.
कभी कभी ऐसा मौका भी आता है जब किताबों में दर्ज क़ानून ज़मीन पर उतरता है और आखिरी छोर पर खड़े इन्सान की मदद करता है.कदाचित ये ऐसा ही मामला है.

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