मैं ज़िन्दगी का साथ निभाता चला गया
हर फिकर को धुंए में उडाता चला गया
बरबादियों का शोक मानना फ़िज़ूल था
बरबादियों का जश्न मनाता चला गया
हर फिकर को धुंए में उड़ाता चला गया
जो मिल गया उसी को मुक़द्दर समझ लिया
जो खो गया में उसको भूलता चला गया
हर फिकर को धुंए में उड़ाता चला गया
ग़म और ख़ुशी में फर्क न महसूस हो जहाँ
मैं दिल को उस मुकाम पे लाता चला गया
हर फिकर को धुंए में उडाता चला गया
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