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Friday, January 21, 2011

सिंगूर, नंदीग्राम और मथुरा के बाद अब इलाहाबाद में भी ज़मीन के मुआवजे को लेकर किसान पुलिस-प्रशासन से टकरा रहे हैं। खेती के लिए लगातार घटती और बढ़ते परिवारों में बंटती ज़मीन को लेकर देश का आम किसान चिंतित है। किसी भी आम किसान के लिए उसकी ज़मीन रोजी-रोटी कमाने का एकमात्र जरिया होती है। लेकिन जब सरकारी तंत्र किसान से उसकी ज़मीन औनेपौने दाम चुकाकर कब्जा लेता है, तो उसके पास विरोध के अलावा कोई उपाय नहीं बचता है। ऐसे विरोध प्रदर्शनों से आम लोगों को बहुत तकलीफ होती है। क्या ऐसी जायज मांगों के लिए हिंसा, आगजनी, पथराव ही अंतिम उपाय है? क्या किसानों के हिंसक विरोध प्रदर्शन को जायज मांग के लिए भी सही ठहराया जा सकता है? क्या किसान शांतिपूर्वक ढंग से अपनी मांगें नहीं रख सकते? क्या शांतिपूर्वक रखी गई मांगों को लेकर सरकार संवेदनशील होगी और उनकी जायज मांगों को पूरा किया जाएगा?


इलाहाबाद में पुलिस और किसानों में भिड़ंत

किसानों का धरना (फ़ाइल)
इलाहाबाद के करछना इलाके में जेपी ग्रुप के पावर प्लांट के लिए अपनी ज़मीन अधिग्रहित किए जाने के विरोध में इलाहाबाद के किसान शुक्रवार को उग्र हो गए.
किसानों का आरोप है कि पुलिस फायरिंग में गुलाब विश्वकर्मा नाम के एक किसान की मौत हो गई है.
लेकिन लखनऊ में पुलिस प्रवक्ता ने कहा है कि गुलाब विश्वकर्मा की मौत उनके अपने घर पर हार्ट अटैक की वजह से हुई है. किसान पुलिस के इस बयान से सहमत नहीं हैं.
किसानों ने इलाहाबाद-मिर्ज़ापुर हाइवे को ठप कर इलाहबाद मुग़लसराय रेलवे ट्रैक पर तोड़-फोड़ कर उसे भी ठप कर रखा है.
किसानो ने 'रैपिड एक्शन फ़ोर्स' की पांच महिला जवानों को बंधक बना लिया था. प्रदर्शन कर रहे किसानों ने पुलिस और प्रशासनिक अफ़सरों की कई गाड़ियां फूंक दी.

यातायात ठप

करछना के किसान
करछना के किसानों ने रास्ते ठप कर दिए
किसानो के पथराव में कई पुलिस वाले भी घायल हुए हैं. सड़क के अलावा रेल यातायात भी पूरी तरह ठप है.
ग़ौरतलब है कि इलाहाबाद के करछना में 400 करोड़ रुपए से बन रहे जेपी ग्रुप के पावर प्लांट के लिए सरकार की तरफ से ज़मीन लिए जाने के विरोध में किसान अनशन पर थे.
शुक्रवार सुबह पुलिस ने जबरन अनशन तुड़वाकर कब्ज़ा करना चाहा तो किसान उग्र हो गए.
करछना की घटना पर भारतीय जनता पार्टी ने बसपा सरकार को 'बर्बर और अलोकतांत्रिक' क़रार देते हुये मायावती सरकार की आलोचना की है.
भाजपा प्रवक्ता राजेन्द्र तिवारी ने सरकार की नीयत पर सवालिया निशान लगाते हुये कहा,"शांतिपूर्ण ढंग से अपनी जीविका और अस्तित्व की रक्षा के लिये जमीन का मुआवजा मांग रहे किसान पुलिस की गोली का शिकार क्यों हो रहे हैं?"

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