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Saturday, July 27, 2013

प्रेम में ख़ुशक़िस्मत नहीं था मैं: गोविंदाचार्य

 शनिवार, 27 जुलाई, 2013 को 09:48 IST तक के समाचार
के एन गोविंदाचार्य
क्या आपके मन में क्लिक करेंउमा भारती के प्रति अब भी प्रेम है?
भारतीय जनता पार्टी के सिद्धांतकार रह चुके के एन गोविंदाचार्य इस सीधे सवाल का सीधा जवाब देते है – “ये तो मेरे अंदर का विषय है. इसकी सार्वजनिक चर्चा उपयोगी भी नहीं है और आवश्यक भी नहीं.”
वो कहते हैं, “अगर यह मेरे संदर्भ की बात होती तो कहना ठीक भी था. पर चूँकि ये सिर्फ़ मुझसे संबंधित ही नहीं है इसलिए मैं इस बारे में सार्वजनिक चर्चा नहीं करता.”
पर वह साथ में यह भी कहते हैं, “मन के भाव तो अब भी वैसे ही होंगे, जैसा मैं 1991 में सोचता होऊँगा. मन के भाव पर मेरा अधिकार है. बाक़ी व्यवहार की मर्यादा है जो हमारे डोमेन के बाहर का क्षेत्र है.”
नब्बे के दशक में भारतीय जनता पार्टी की नेता और मध्य प्रदेश कीक्लिक करेंपूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती के साथ गोविंदाचार्य के प्रेम संबंधों से अख़बार भरे रहते थे.
इतने साल बाद गोविंदाचार्य से गाहे-बगाहे यह सवाल पूछा जाता है कि क्या प्रेम का अधूरापन आपको अब भी सालता है?

प्रेम की टीस

"प्रेम का अधूरापन अगर सालता भी है तो हम क्या कर सकते हैं? ये ठीक है कि एक समय ऐसा आया था पर मेरा सौभाग्य वैसा नहीं रहा होगा, मैं कम ख़ुशक़िस्मत रहा होऊँगा. लेकिन ठीक है, जो स्थितियाँ रहती हैं मनुष्य उन्हें झेलते हुए आगे बढ़ता है."
केएन गोविंदाचार्य
गोविंदाचार्य ने कहा, “प्रेम का अधूरापन अगर सालता भी है तो हम क्या कर सकते हैं? यह ठीक है कि एक समय ऐसा आया था पर मेरा सौभाग्य वैसा नहीं रहा होगा, मैं कम ख़ुशक़िस्मत रहा होऊँगा. लेकिन ठीक है, जो स्थितियाँ रहती हैं मनुष्य उन्हें झेलते हुए आगे बढ़ता है.”
क्या उनका प्रेम अधूरा रहा, जिसे लातीनी अमरीकी कथाकार गार्सिया मार्क्वेज़ ‘अनरिक्वाइटेड लव’ कहते हैं?
इस सवाल पर गोविंदाचार्य अचकचाते नहीं हैं बल्कि अपनी चिर-परिचित लंबी हँसी के बाद कहते हैं, “मन के भाव का महत्व ज़्यादा है. भाव के स्तर पर प्रेम तो परिपूर्ण होता है. उसे व्यवहार की बैसाखी या आलंबन की ज़रूरत नहीं पड़ती.”
वो कहते हैं कि उमा भारती के प्रति उनके मन में आदर है.
गोविंदाचार्य कहते हैं, “उमा भारती ने मुझे आध्यात्म की तरफ़ झुकाया. उन्होंने संन्यास के अनुसार जीवन जिया, इसलिए मैं उन्हें गुरुतुल्य मानता हूँ. मैं मानता हूँ कि उनके पूर्वजन्म के कर्म और इस जन्म की पूँजी मुझसे कहीं ज़्यादा है.”
पर राजनीति में दिन-रात जीवित रहने वाले ऐसे व्यक्ति के बारे में ये कहना कितना ठीक होगा कि उसने संन्यास के अनुसार जीवन जिया, ख़ासतौर पर उमा भारती के संदर्भ में, जो नाराज़ होकर भारतीय जनता पार्टी से बाहर निकलीं और बाद में फिर शामिल हो गईं, मुख्यमंत्री पद पर रहीं और अब भी राजनीतिक महत्वाकांक्षा रखती हैं?

संन्यास का धरातल

उमा भारती
गोविंदाचार्य कहते हैं कि वो उमा भारती को गुरुतुल्य मानते हैं.
गोविंदाचार्य कहते हैं, “आप संन्यास को केवल भाव नियंत्रण के रूप में देख रहे हैं. मैंने अनुभव किया है कि गाँव, गाय, ग़रीब और औरत के बारे में उमा जी की संवेदनशीलता के बारे में सत्ता और राजनीति कोसों दूर तक नहीं है. इसलिए मैं उन्हें ऊँचे धरातल पर रखता हूँ.
एक दौर में उमा भारती और गोविंदाचार्य के विवाह की अफ़वाहें भी फैली थीं, लेकिन तब दोनों ने ही इन अफ़वाहों का खंडन किया था.
उस दौर के बाद अचानक गोविंदाचार्य ने भारतीय जनता पार्टी से अवकाश लेने की घोषणा की और कहा कि वो वैश्वीकरण का अध्ययन और उसका जवाब तलाशना चाहते हैं.
अब वह राष्ट्रीय स्वाभिमान आंदोलन नाम का एक संगठन चलाते हैं और उनका कहना है कि वह देश के अलग-अलग हिस्सों में "भारत-परस्त और ग़रीब-परस्त" राजनीति के पक्ष में लोगों को एकजुट करने का काम करते हैं.
उमा भारती बरसों तक बीजेपी से बाहर रहने के बाद कुछ ही समय पहले पार्टी में लौट आई हैं.
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